छप्पय कविता का भावार्थ

-: परिचय जीवन परिचय :-

जन्म : 1570 अनुमानित है 
निधन : अज्ञात,( 1600 तक वर्तमान )
जन्म स्थान : साम्प्रदायिक मान्यता के अनुसार इनका जन्म दक्षिण भारत में हुआ था,
स्थाई निवास : वृन्दावन 
रचनाए : भक्तमाल ( रचनाकाल 1585-1596 ), अस्ठ्याम ( बज्राभाषा गद्य में ), अस्ठ्याम ( 'रामचरितमानस' की दोहा-चौपाई शैली में ), तथा रामचरित सम्बंधित प्रकीर्ण पदों का संग्रह.

-: परिचय जीवन परिचय :-

-: काव्यगत की  विशेषताएँ :-

नाभादास एक भावुक , सहदय , विवेक संपन्न तथा सच्चे व्यक्ति थे. उनमें किसी प्रकार का पक्षपात , दुराग्रह या कट्टरता नहीं हुआ करती थी. ' भक्तमाल ' उनके शील , सोच एवं मानस का निर्मल दर्पण था. उन्होंने अपनी अभिरुचि , ज्ञान , विवेक , भाव - प्रसार आदि के द्वारा अपनी प्रतिभा का प्रकर्ष उपस्थित किये थे.  ' भक्तमाल ' ग्रंथ में लिखे 16 छप्पय उनकी तल स्पर्शिणी अंतदृष्टि , मर्मग्राहिणी प्रज्ञा , सारसग्राही चिंतन और विदग्घ भाषा शैली के नमूने है । इनके पीछे कवि के विशाल अध्ययन , सूक्ष्म पर्यवेक्षण , प्रदीर्घ मनन और अंतरंग अनुशीलन छिपा हुआ हैं .

छप्पय नाभादास ( 1 )

भगति विमुख जे धर्म सो सब अयर्भ करि गाए । 

योग या त दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए ।।

हिंदू तुरक प्रमान रमेनी सबदी साधी । 

पक्षपात नहि बचन सबहिके हितकी भाषी ।। 

आरूढ़ दशा है जगत पै , मुख देखी नाहीं भनी । 

कबीर कानि राखी नहीं , वर्णाश्रम घट दर्शनी ।। 

संबंध / प्रसंग :- प्रस्तुत छप्पय नाभादास के द्वारा रचित लेख ' भक्तमाल ' से लिया गया है. इस छप्पय में नाभादास ने क्रांतिकारी कवि कबीर की मति की गंभीरता तथा अंतःकरण की भक्ति से पूर्णता का वर्णन किया है. यह छप्पय कबीर से संबंधित [ Related ] उनके पुरे अध्ययन तथा विवेचन का सार-सूत्र है.

छप्पय - नाभादास व्याख्या / अर्थ ( 1 )

नाभादास जी कहते हैं कि कबीर जी की मति बहुत गंभीर तथा अन्तः करण भक्तिरस से भरपूर था. जाति - पाति वर्णाश्रम आदि साधारण धर्मों को वो नहीं मानते थे. उन्होंने केवल श्री भक्ति [ भागवत धर्म ] को ही दुढ़ किया था. उनके अनुसार जो भी धर्म भक्ति से विमुख करते हैं, उन सभी को अधर्म ' ही कहा जा सकता है. उन्होंने सच्चे उदय के बिना किए गए भजन , बंदगी के बगेर तप , योग , यज्ञ , दान , व्रत आदि को तुच्छ एवं अमहत्व बताया है. 

कबीर के रमैनी , शब्द , साखी आदि इस बात के प्रामाण हैं कि उन्होंने हिन्दु तया मुस्लमानों के बीच कोई भी और कभी भी पक्षपात नहीं किया है. उनके वचनों में तो सिर्फ़ सबके हित की बात नजर आती है. कबीर जाति - पाति के भेदभाव से ऊपर उठकर केवल शुद्ध अन्तः करण से की गई भक्ति को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं. तथा वे जगत की दशा के अनुरूप चलते हुए मुंह देखकर बात करने वालो में से नहीं हैं. उन्होंने वर्णाधम के सभी छः/06 दर्शनों की सच्चाई को खोलकर सामने रख दिया है तथा किसी के प्रति कभी भी पक्षपात नहीं किया है.

छप्पय नाभादास ( 2 )

उक्ति चोज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी ।

बचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी ।। 

प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी । 

☞ जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ।। 

विमल बुद्धि हो तासुकी , जो यह गुन श्रवननि परे । 

सूर कवित सुनि कौन कवि , जो नहि शिरचालन करे ।। 

संबंध / प्रसंग :- प्रस्तुत छप्पय नाभादास द्वारा रचित ' भक्तमाल ' से लिया गया है. इस छप्पय में कवि ने सूरदास के काव्य की विभिन्न विशेषताओं का सुन्दर वर्णन किया है.

छप्पय - नाभादास व्याख्या / अर्थ ( 2 )

कवि कहते हैं कि सूरदास के पद में नवीन युक्तियों , चमत्कार , चातुर्य , अद्भुत अनुप्रास तथा वर्णो के यथार्थ की अस्थिति बहुत सुन्दरता के साथ उभर कर आती जाती है. वे कवित्त आदि में जिस प्रकार के वचन एवं प्रेम का वर्णन है और उसका अंत तक निर्वाह करते हैं. कविता में तुकबंदी अद्भुत अयं प्रकट करती है प्रभु ने उनके ह्रदय में दिव्य दृष्टि दी जिसमें भगवान की संपूर्ण लीलाओं का प्रतिबिंब भासित हुआ. 

उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से प्रभु का. जन्म , कर्म , गुण , रूप आदि देखकर उसे अपनी सना यानि जीभ  से प्रकाशित किया. जो भी मनुष्य सूरदास द्वारा गाएका भगवद् गुणगान को अपने कानों में धारण करता है अर्थात् सुनता है तो उसकी बुद्धि निर्मल हो जाती है. नाभादास का जागे कहते हैं कि संसार में ऐसा कौन - सा कवि है जो सूरदास जी के काथ्य को सुनकर प्रशंसापूर्वक अपना सीसा भी ना हिलाता हो.

इस पोस्ट में हमलोगों ने नाभादास के द्वारा लिखित कविता छप्पय का सम्पूर्ण हिंदी अर्थ को जाना दोस्तों छप्पय का हिंदी अर्थ समझने में कोए भी परेशानी हुआ हो तो हमे जरुर बताये. धन्यवाद