पुत्र वियोग कविता का हिन्दी अर्थ

दोस्तों इस पोस्ट में हमलोग Class 12th के काव्यखंड में Chapter 7. पुत्र वियोग - जो की सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखा गया है. तो चलिए शुरू करते है. पुत्र वियोग का हिन्दी अर्थ.

सुभद्रा कुमारी चौहान : लेखक परिचय


सुभद्रा कुमारी चौहान : के बारे में 

कवियित्री

सुभद्रा कुमारी चौहान

जन्म

16 अगस्त 1994

निधन

15 फरवरी 1948

माता

श्रीमती धीरज कुवर

पिता

ठाकुर रामनाथ सिंह

पति

ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान


 शिक्षा :- क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल, इलाहाबाद में प्रारम्भिक शिक्षा, इसी स्‍कूल में प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ भी पढ़ी थी. 9 वीं तक पढ़ाई के बाद असहयोग आंदोलन में भाग लिया.

➤ कर्म क्षेत्र :- समाज सेवा, राजनीति, स्‍वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भागीदारी, अनेक बार कारावास, मध्‍य प्रदेश में काँग्रेस पार्टी की एम. एल. ए.।

➤ कृतियाँ :- 'मुकुल' (कविता संग्रह,1930), त्रिधारा ( कविता चयन ), बिखरे मोत्ती (कहानी संग्रह), सभा के खेल (कहानी संग्रह)

➤ पुरस्कार :- मुकुल पर 1930 में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' का ‘सेकसरिया पुरस्कार’

➤ प्रस्तुत कविता मुकुल (कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है.

पुत्र वियोग कविता का हिन्दी अर्थ - Class 12

आज दिशाएँ भी हँसती हैं

है उल्लास विश्व पर छाया

मेरा खोया हुआ खिलौना

अब तक मेरे पास न आया
प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री कहती है कि आज चारों ओर खुशी का माहौल है और सारे संसार में खुशियाँ छाई है लेकिन ये खुशियाँ मेरे लिए व्यर्थ है क्योंकि मेरा खोया हुआ पुत्र अभी तक मुझे प्राप्त नहीं हुआ. मतलब की कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) के पुत्र का निधन हो गया है.


शीत न लग जाए, इस भय से

नहीं गोद से जिसे उतारा

छोड़ काम दौड़ कर आई

‘मा’ कहकर जिस समय पुकारा

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमे उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने शीत लगने के भय से उसे अपनी गोद से नहीं उतारा. उसने जब भी माँ कहके आवाज लगाई मैं अपना सारा काम-काज छोड़कर ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) उसके पास दौड़कर आई ताकि उसकी जरूरतों को मैं पूरा कर सकूँ.


थपकी दे दे जिसे सुलाया

जिसके लिए लोरियाँ गाईं,

जिसके मुख पर जरा मलिनता

देख आँखें में रात बिताई.

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने जिसके हरेक सुख का ध्यान रखा. जिसे थपकी दे कर सुलाया और जिसके लिए लोरियाँ गाई. उसके चेहरे पर छाई उदासी को महसूस करके जिसका रात भर जाग कर ख्याल रखा.


जिसके लिए भूल अपनापन

पत्थर को भी देव बनाया

कहीं नारियल दूध, बताशे

कहीं चढ़ाकर शीश नवाया.

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैंने जिसके लिए अपने सारे सुखों को भूला दिया. ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) पत्थर को देवता मानकर जिसे नारियल दूध और बताशे चढ़ाएँ. जिसके लिए मैंने देवालयों में शीश नवाया वो आज मेरे पास नहीं है.


पुत्र वियोग कविता का सारांश लिखिए

फिर भी कोई कुछ न कर सका

छिन ही गया खिलौना मेरा

मैं असहाय विवश बैठी ही

रही उठ गया छौना मेरा.

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मेरे द्वारा की गई पूजा अर्चना दुआएँ कोई भी काम नहीं आई. कोई भी मेरा कुछ नहीं कर सका और मेरा हृदय का टुकड़ा ( पुत्र ) मुझसे छिन ही गया. मैं आज असहाय और विवश बैठी हूँ और मेरा नन्हा बच्चा मेरे आँखों के सामने ही भगवान को प्यारा हो गया.


तड़प रहे हैं विकल प्राण ये

मुझको पल भर शांति नहीं है

वह खोया धन पा न सकूँगी

इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है.

कक्षा 12 हिन्‍दी बातचीत सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मेरे प्राण तड़प रहे है और मुझे एक पल की भी शांति नहीं है. मैंने जो अनमोल धन खो दिया है उसे मैं अब वापस नहीं पा सकूँगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है.


फिर भी रोता ही रहता है

नहीं मानता है मन मेरा

बड़ा जटिल नीरस लगता है

सूना सूना जीवन मेरा.

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैं जानती हुँ कि मैं अपने पुत्र को प्राप्त नहीं कर सकती. फिर भी मेरा हृदय मेरा मन इस बात को मानने को तैयार नहीं है. मेरा जीवन अब कठिन और नीरस सा हो गया है.


यह लगता है एक बार यदि

पल भर को उसको पा जाती

जी से लगा प्यार से सर

सहला सहला उसको समझाती.

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि यदि मैं अपने पुत्र को एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे जी भर कर प्यार करती और उसे समझती कि वह अपनी माँ को यूं छोड़ कर ना जाए. लेकिन अब उसको पाना संभव नहीं है.

मेरे भैया मेरे बेटे अब

माँ को यों छोड़ न जाना

बड़ा कठिन है बेटा खोकर

माँ को अपना मन समझाना.

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि मैं अपने पुत्र को अगर एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे समझाती कि वह मझे छोड़कर न जाए. माँ के लिए अपने बेटे को खोकर अपने मन को सांत्वना देना बड़ा ही कठिन होता है.


भाई-बहिन भूल सकते हैं

पिता भले ही तुम्हें भुलावे

किन्तु रात-दिन की साथिन माँ

कैसे अपना मन समझावे.

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग ( मुकुल : कविता संग्रह,1930 ) से ली गई है जिसमें उन्होने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी चित्रण किया है. कवयित्री ( सुभद्रा कुमारी चौहान ) अपने पुत्र को याद करती हई कहती है कि भाई-बहन तुम्हें भूल सकते है तुम्हारे पिता भले ही तम्हें भूल जाएँ लेकिन एक माँ जो दिन-रात अपने बच्चे के साथ रही हो वो कैसे अपने मन को समझा सकती है. कवयित्री कहना चाहती है कि माँ का हृदय बच्चे को कभी भी नहीं भूल सकता.

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